वो जिनमें चमकते थे वफा के मोती,
यकीन मानो वो आँखें ही बेवफा निकलीं !
चाहत हुई किसी से तो फिर बे-इन्तेहाँ हुई,
चाहा तो चाहतों की हद से गुजर गये,
हमने खुदा से कुछ भी ना मांगा मगर उसे,
माँगा तो सिसकियों की भी हद से गुजर गये !
आग लगी दिल में जब वो खफ़ा हुए,
एहसास हुआ तब जब वो जुदा हुए,
करके वफ़ा वो हमे कुछ दे न सके,
लेकिन दे गये बहुत कुछ जब वो वेबफा हुए।
सिर्फ चहरे की उदासी देखकर ही निकल आये थे,
उसके आंसू, दिल का आलम तो अभी उसने देखा ही नहीं था !
उसने देखा ही नहीं था कभी अपनी हथेली को गोर से,
उसमें धुंदली सी एक लकीर मेरे नाम की भी थी !