अजीब रंज है कि ना जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जो हमारा हो नहीं सकता उसी पर मर रहे हैं हम !
इनायत भी नहीं होती इबादत भी नहीं होती,
इस जमाने में लोगों को सच्ची मोहब्बत भी नहीं होती !
अरे जनाब शेर-ओ-शायरी तो दिल बहलाने का जरिया है,
वरना मोहब्बत कागजों पर लिखने से महबूब लौटा नहीं करते !
मिले हर जख्म को मुस्कान से सिना नहीं आया,
अमरता चाहते थे पर जहर पीना नहीं आया,
तुम्हारी और मेरी दास्तां में फर्क इतना है,
मुझे मरना नहीं आया तुम्हें जीना नहीं आया !
जाने क्यों हमें आंसू बहाना है आता,
जाने क्यों हाले दिल बताना नहीं आता,
क्यों साथी बिछड़ जाते है हमसे,
शायद हमें ही साथ निभाना नहीं आता !